Story of Parshuram : हिन्दू समाज के आदर्श माने जाने वाले परशुराम की कहानी

Lord Parashuram

September 23, 2023, 8 minutes read

भगवान परशुराम: भगवान विष्णु के अवतार

हिन्दू धर्म के अवतारों के बीच भगवान परशुराम एक महत्वपूर्ण देवता है, जिनका जीवन और कथाएँ हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। परशुराम एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण कार्य किए और धर्म की रक्षा के लिए अपना समर्पण किया।

परशुराम का जन्म भगवान विष्णु के आवातारों में से एक के रूप में हुआ था और उनका मुख्य कार्य था क्षत्रियों के वध का। उन्होंने कहा था कि क्षत्रिय जमाना अत्यंत अधर्मपरायण हो गया है और वे धर्म की रक्षा करने के लिए 21 बार क्षत्रियों का वध करेंगे। परशुराम का धनुष "अक्षय धनु" था, और यह धनुष अमर होता था। परशुराम को "क्रोधात्मा" कहा जाता है क्योंकि वे हमेशा क्रोधित रहते थे और उनके क्रोध का कारण उनके पिता के न्याय के लिए क्षत्रियों के साथ युद्ध करना पड़ा था। परशुराम को "चिरंजीवी" कहा जाता है क्योंकि वे अमर हैं, यानी उनका मरण नहीं हो सकता। वे युगों पहले से अब तक जीवित हैं और धर्म की सेवा करते रहते हैं।

परशुराम के प्रमुख गुरु का नाम भगवान दत्तात्रेय था, जिनसे वे धनुर्विद्या और आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा प्राप्त करते थे। उनके छात्रों में से कुछ महत्वपूर्ण थे, जैसे कि भीष्म, ध्रोणाचार्य, और कर्ण। उन्होंने इन छात्रों को धनुर्विद्या की शिक्षा दी और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। परशुराम ने भगवान राम और भगवान कृष्ण के साथ भी युद्ध किया और उनके साथ धनुर्विद्या का गहरा ज्ञान बांटा। उन्होंने अपनी अद्वितीय धनुर्विद्या के बल पर कई असुरों और दुष्टों का नाश किया। इस ब्लॉग में हमने भगवान परशुराम के जीवन के महत्वपूर्ण पहलूओं का परिचय दिया है, जिनमें उनके माता-पिता, धनुष, क्रोध का कारण, छात्र, और उनके "चिरंजीवी" रूप की महिमा शामिल हैं। भगवान परशुराम का जीवन हमें धर्म, शक्ति, और समर्पण के महत्वपूर्ण सिख देता है।

परशुराम के जन्म का रहस्य

हिंदू मिथकों और पुराणों के अनुसार, भगवान परशुराम एक ऐसे देवता हैं जिनका जन्म अत्यंत रहस्यमय है। उनका जन्म माता रेणुका और पिता जमदग्नि के घर हुआ था और उनके जन्म का परिणाम एक महत्वपूर्ण घटना से जुड़ा है।

परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि एक महान तपस्वी और धर्मिक गुरु थे। उन्होंने अपने जीवन को तपस्या और ध्यान में व्यतीत किया और भगवान शिव की उपासना की। उनकी पत्नी रेणुका भी एक पतिव्रता और धार्मिक महिला थीं। उन्होंने अपने पति की सेवा करने का संकल्प लिया था और उनके परम भक्ति और तपस्या से भगवान शिव से वर प्राप्त किया था कि वह हमेशा युवा और सुंदर रहेंगी। इस वर प्राप्ति के बाद, रेणुका को "परम सती" कहा गया और उन्होंने अपने पति की सेवा करने का संकल्प लिया।

परशुराम के जन्म का रहस्य इस घटना से जुड़ा है कि उनके पिता जमदग्नि ऋषि एक अत्यंत धर्मप्रिय और योग्य ऋषि थे, और उनकी तपस्या का फल भगवान शिव से एक अद्वितीय धनुष की प्राप्ति थी। यह धनुष "अक्षय धनु" के नाम से प्रसिद्ध था और इसे उनके पुत्र परशुराम को सौंपा गया था।

परशुराम के जन्म के बाद, उनके पिता ने उन्हें अद्वितीय धनुर्विद्या की शिक्षा दी और उन्हें एक महान योद्धा और ब्राह्मण बनाने का प्रयास किया। परशुराम ने इस धनुर्विद्या का अद्वितीय ज्ञान प्राप्त किया और वे एक अद्वितीय योद्धा बने।

परशुराम का क्रोध

परशुराम का क्रोध

परशुराम भगवान विष्णु के 6वें अवतार माने जाते हैं । उनके पिता का नाम जमदग्नि तथा माता का नाम रेणुका था। परशुराम के चार बड़े भाई थे। एक दिन जब सब पुत्र काम से जंगल चले गए तब माता रेणुका स्नान करने को गई, जिस समय वह स्नान करके आश्रम को लौट रही थीं, उन्होंने राजा चित्ररथ को जलविहार करते देखा। यह देखकर उनका मन विचलित हो गया और जब वो घर लौटीं तो उनके हाव भाव देखकर महर्षि जमदग्नि यह बात जान गए।

किसी भी पुत्र ने नहीं मानी पिता की आज्ञा

- इतने में ही वहां परशुराम के बड़े भाई रुक्मवान, सुषेणु, वसु और विश्वावसु भी आ गए। महर्षि जमदग्नि ने उन सभी से बारी-बारी अपनी मां का वध करने को कहा लेकिन सभी ने ऐसा करने से मना कर दिया। - इससे नाराज होकर महर्षि जमदग्नि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति को खत्म कर दिया। तभी वहां परशुराम आ गए।

- उन्होंने पिता के आदेश का पालन करते हुए अपनी मां का सर काट दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा।

- तब परशुराम ने 3 वरदान मांगे। पहला माता रेणुका को पुनर्जीवित करने और दूसरा चारों भाइयों को ठीक करने का वरदान मांगा।

- तीसरे वरदान में उन्होने मांगा कि उन्हे कभी पराजय का सामना न करना पड़े और उनको लंबी आयु प्राप्त हो।

युद्ध की कला में हैं माहिर

भगवान परशुराम ने भीष्‍म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे कई सूर वीरों करे शिक्षा दी। कहा जाता है कि परशुराम अमर हैं।

वह भगवान कल्कि को भी युद्ध की नीतियां सिखाएंगें, जो कलयुग में भगवान विष्‍णु के अवतार होगें।

भगवान परशुराम को क्यों आता था ज्यादा गुस्सा

महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक का विवाह राजा गाधि की पुत्री सत्यवती से हुआ था। विवाह के बाद सत्यवती ने महर्षि भृगु से अपने व अपनी माता के लिए पुत्र की याचना की।

तब महर्षि भृगु ने सत्यवती को दो फल दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम गूलर के वृक्ष का तथा तुम्हारी माता पीपल के वृक्ष का आलिंगन करने के बाद ये फल खा लेना।

लेकिन सत्यवती व उनकी मां ने इस नियम का पालन नहीं कर पाई। यह बात महर्षि भृगु को पता चल गई। तब उन्होंने सत्यवती से कहा कि तूने गलत वृक्ष का आलिंगन किया है।
इसलिए तेरा पुत्र ब्राह्मण होने पर भी क्षत्रिय गुणों वाला पेदा होगाऔर तेरी माता का पुत्र क्षत्रिय होने पर भी ब्राह्मण गुणों वाला होगा।
तब सत्यवती ने महर्षि भृगु से प्रार्थना की कि मेरा पुत्र क्षत्रिय गुणों वाला न हो भले ही मेरा पौत्र (पुत्र का पुत्र) को ऐसे गुण वाला हो। उन्होने यह बात मान ली।
कुछ समय बाद सत्यवती के गर्भ से जमदग्रि मुनि ने जन्म लिया। इनका विवाह रेणुका से हुआ। मुनि जमदग्रि के 5 पुत्र हुए। उनमें सबसे छोटे परशुराम थे।

अक्षय धनुष का प्राप्ति

परशुराम ने अपने पिता से धनुर्विद्या की शिक्षा प्राप्त की थी और उन्होंने यह धनुर्विद्या किस प्रकार से प्राप्त की थी, यह एक रोचक कथा है।

परशुराम के पिता जमदग्नि महर्षि एक दिन अपने आश्रम में पूजा कर रहे थे जब ब्रह्मा देव वहाँ प्रकट हुए। ब्रह्मा देव ने जमदग्नि के सामने एक बेहद शानदार और अक्षय धनुष प्रस्तुत किया। यह धनुष ब्रह्मा देव के आशीर्वाद से अद्वितीय था और यह कभी भी खत्म नहीं होता था। इस धनुष का वाहन गरुड़ था, और यह अस्तित्व के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था।

ब्रह्मा देव ने इस धनुष को जमदग्नि महर्षि को दिया और कहा, "यह अक्षय धनुष है, और इसके प्राप्ति के बाद तुम्हें असीम शक्तियां प्राप्त होंगी।" जमदग्नि महर्षि ने ब्रह्मा देव के आशीर्वाद के साथ इस अक्षय धनुष को प्राप्त किया और उसने इसे अपने आश्रम में रखा।

जब परशुराम ने धनुर्विद्या का अभ्यास करना शुरू किया, तो उनके पिता ने उन्हें इस अक्षय धनुष का प्रयोग करने की अनुमति दी। परशुराम ने यह धनुष ब्रह्मा देव के आशीर्वाद से प्राप्त किया है, और इसका प्रयोग केवल वीर और महायोद्धाओं के लिए हो सकता है।

परशुराम ने इस अक्षय धनुष का प्रयोग कई युद्धों में किया, और उन्होंने इसकी शक्ति को सबके सामने प्रकट किया। यह धनुष परशुराम के शक्तिशाली और अद्वितीय योद्धा होने की पहचान बन गया और उन्होंने इसका उपयोग अधर्मिक और अधर्मिक कार्यों को सुधारने के लिए किया।

परशुराम के पास इस अक्षय धनुष की शक्ति थी, जिससे वह किसी भी संघर्ष में विजयी हो सकते थे और धर्म की रक्षा कर सकते थे। इसके बिना, वे इतने अद्वितीय और प्रतिबद्ध योद्धा नहीं हो सकते थे।

इस प्रकार, परशुराम को अक्षय धनुष की प्राप्ति कैसे हुई, जो उन्हें ब्रह्मा, विष्णु, और महेश्वर के द्वारका में महत्वपूर्ण भूमिका में स्थापित किया, यह कथा हमारे पौराणिक ग्रंथों में उपलब्ध है और हमारे सनातन धर्म के महत्वपूर्ण हिस्से का हिस्सा है।

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Frequently Asked Questions

Question 1: परशुराम के द्वारा प्रशिक्षित छात्र कौन थे?

परशुराम ने भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, और कर्ण जैसे महान योद्धाओं को धनुर्विद्या में प्रशिक्षित किया था।

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